श्री वृहस्पतिदेव जी की पूजा वृहस्पतिवार को की जाती है। वृहस्पति देव जी को धन धान्य का देव माना जाता है इसलिए कहते हैं जिनकी कुंडली में वृहस्पतिदेव जी उच्च स्थिति में होते हैं उनके आस पास धन धान्य भरपूर होता है। वृहस्पति देव जी को सभी देवताओं का गुरु माना जाता है। वृहस्पतिवार (गुरुवार) के दिन व्रत में वृहस्पतिदेव जी की आरती करने का विधान है।
श्री वृहस्पतिदेव जी की आरती निम्न है :-
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
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